मिनी संसद में इतना बवाल क्यों, माननीय तो देश के कानून बनाने वाले हैं, कानून को हाथ में क्यों लिया?

नई दिल्ली : संसदीय समितियां मिनी संसद से कम नहीं होतीं। उस मिनी संसद में माननीय अगर भाषा की मर्यादा भूल जाएं, भाषायी मर्यादा तो छोड़िए, बोतल फेंक मारने जैसी घटिया हरकतें करने लग जाएं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य भला क्या होगा। लेकिन ये सब हुआ। वक्फ बि

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नई दिल्ली : संसदीय समितियां मिनी संसद से कम नहीं होतीं। उस मिनी संसद में माननीय अगर भाषा की मर्यादा भूल जाएं, भाषायी मर्यादा तो छोड़िए, बोतल फेंक मारने जैसी घटिया हरकतें करने लग जाएं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य भला क्या होगा। लेकिन ये सब हुआ। वक्फ बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मुंबई में हुई बैठक में ये सब हुआ। एक माननीय जो सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाई कोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट हैं। एक और माननीय जो कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज हैं। दोनों एक ही राज्य से सांसद। बैठक के दौरान दोनों के बीच इतनी गरमा-गरमी बढ़ गई कि शब्दों की मर्यादा खत्म हो गई। इतना ही नहीं, पूर्व जज पर भड़के वकील साहब ने कांच की पानी की बोतल को समिति के चेयरमैन की तरफ दे मारा। इस क्रम में खुद की उंगली को चोटिल कर बैठे।
तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी को मंगलवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संसदीय समिति से एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया। यह घटना तब हुई जब बीजेपी सांसद और कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज अभिजीत गांगुली के साथ तीखी बहस के बीच उन्होंने कांच की पानी की बोतल तोड़कर अध्यक्ष की ओर फेंक दी। हमारे सहयोगी इकनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी।

संयोग देखिए कि एक दिन पहले ही सोमवार को जेपीसी के चेयरमैन जगदंबिका पाल के बर्थडे पर समिति में शामिल सदस्यों ने एक साथ केट काटा था। उसकी तस्वीरें भी सामने आई थीं। तस्वीर में जगदंबिका पाल के साथ कल्याण बनर्जी भी केक काटटे हुए दिख रहे थे। एक दिन बाद ही, मंगलवार को मीटिंग में बनर्जी ने ऐसा आपा खोया कि पाल के ऊपर पानी की बोतल फेंक दी।

वक्फ बिल पर गठन के बाद से ही संयुक्त समिति की बैठकें काफी हंगामेदार रही हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच नियमित रूप से तीखी बहस देखी गई हैं, जिसमें कुछ ने एक-दूसरे के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां भी की है। लेकिन मंगलवार को, समिति की बैठक ने तब एक बदसूरत मोड़ ले लिया जब तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कांच की पानी की बोतल तोड़ दी। कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज और बीजेपी सांसद गंगोपाध्याय के साथ गरमागरम बहस के दौरान उन्होंने ये हरकत की।


दरअसल, समिति की बैठक के दौरान ओडिशा स्थित दो संगठन अपना प्रजेंटेशन दे रहे थे। इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने प्रजेंटेशन की प्रासंगिकता को लेकर सवाल भी उठाया। जब बीजेपी सांसद गंगोपाध्याय बोल रहे थे, तभी कल्याण बनर्जी अपनी बारी का इंतजार किए बिना ही बोलने लगे। इस दौरान दोनों में गरमागरम बहस हो गई और भाषायी मर्यादा भी तार-तार हो गई। गरमागरमी के बीच बनर्जी ने कांच की बोतल टेबल पर तोड़ दी और उसे जगदंबिका पाल की तरफ उछाल दिया।

इस दौरान बनर्जी के अंगूठे और छोटी उंगली में चोट लग गई और उन्हें प्राथमिक उपचार देना पड़ा। प्राथमिक उपचार के बाद, उन्हें AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और AAP नेता संजय सिंह के साथ बैठक कक्ष में वापस जाते देखा गया। हमारे सहयोगी इकनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि तीखी बहस के बीच पश्चिम बंगाल के दोनों सांसदों ने एक-दूसरे के खिलाफ कुछ असंसदीय शब्दों का भी इस्तेमाल किया।

बैठक फिर से शुरू होने के बाद, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने समिति के शेष कार्यकाल के लिए बनर्जी को निलंबित करने का प्रस्ताव रखा।

विपक्षी सांसदों के साथ कुछ चर्चा और बहस के बाद, इसे घटाकर एक दिन कर दिया गया और पैनल ने प्रस्ताव पर 9-8 से मतदान किया। दुबे ने कहा कि वह नहीं चाहते कि विपक्षी सदस्य बनर्जी के निलंबन का इस्तेमाल नियमित रूप से पैनल की कार्यवाही को बाधित करने और रिपोर्ट तैयार करने में बाधा पैदा करने के लिए करें।

बैठक समाप्त होने के बाद, बनर्जी ने घटना के बारे में पत्रकारों से बात करने से इनकार कर दिया।

जब पाल से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि वह विपक्षी सांसदों को उतना ही समय दे रहे हैं जितना वे बैठक की कार्यवाही में भाग लेने की इच्छा रखते हैं। उन्होंने ईटी को बताया, 'अगर कोई विपक्षी सांसद यह साबित कर सकता है कि मैं उन्हें पर्याप्त समय नहीं दे रहा हूं, तो मैं पैनल अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने को तैयार हूं। मैं सौहार्दपूर्ण वातावरण में बैठकें आयोजित करने की कोशिश कर रहा हूं। इसीलिए आप देख सकते हैं कि हम नियमित रूप से बैठक कर रहे हैं ताकि सभी सांसदों को भाग लेने का मौका मिले।'

चार बार के सांसद और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल ने कहा कि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में उन्होंने समिति की बैठकों में किसी जनप्रतिनिधि द्वारा ऐसा अनुशासनहीन व्यवहार नहीं देखा है। पाल ने आगे कहा कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को घटना से अवगत करा दिया है।

सूत्रों ने कहा कि मुंबई में हुई समिति की एक बैठक में भी बनर्जी के खिलाफ मसौदा कानून पर पैनल के सामने अपने विचार रखने वाले एक गवाह से बदसलूकी करने की शिकायत दर्ज कराई गई थी। समिति ओडिशा के दो संगठनों के विचार सुन रही थी, जिसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीश और वकील शामिल थे, जब विपक्षी सदस्यों ने सवाल उठाया कि विधेयक में उनकी क्या हिस्सेदारी है।

सवाल ये है कि मिनी संसद को जंग का अखाड़ा बनाने तक से माननीयों में हिचक क्यों नहीं है? माननीय तो कानून बनाने वाले हैं, फिर जुबानी गरमागरमी के बाद हमले की कोशिश करके कानून का ही मखौल क्यों उड़ा रहे? संसद और सड़क का फर्क तक क्यों भूल जाते हैं हमारे माननीय? जवाब शायद किसी के पास नहीं लेकिन राजनीतिक मतभेद का इस तरह सड़क के संग्राम में तब्दील होना बेहद अफसोसनाक है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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